Note bandi 2.0 🚫 देश में फिर हुई ‘नोट बंदी’, 2000 के नोट हुए बंद, 30 सितंबर तक किये जा सकेंगे बैंक में जमा

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2000 रुपये के नोटों को सर्कुलेशन से बाहर करने का एलान किया है.
शुक्रवार को जारी अपने बयान में आरबीआई ने कहा है कि ये नोट वैध रहेंगे और 30 सितंबर 2023 तक इन्हें बैंकों में जमा कराया जा सकता है
बयान में कहा गया है कि लोग 2000 के नोट अपने बैंक खाते में जमा कर सकते हैं या किसी भी बैंक की शाखा में जाकर अपने नोट बदल सकते हैं.
नोटबंदी (Note bandi) भारत में नोटों के बंद हो जाने को कहा जाता है। इसका पूरा नाम है “नोटबंदी और वाणिज्यिक परिवर्तन (सुधार) योजना”। यह योजना 8 नवंबर 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित की गई थी। इसमें 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोटों को वैधता खो देने का फैसला किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य था कालेधन के प्रवाह को रोकना, गैरकानूनी और आतंकी गतिविधियों को रोकना, नकदी सम्बंधित अपराधों के खिलाफ कार्रवाई करना, और भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारना था।
2000 के नोट को कैसे बदलवाये :-
• 2000 के नोट का सर्कुलेशन बंद होगा
• 23 मई से 30 सितंबर तक बैंक से बदलवा सकेंगे
• 2016 में बाद बाजार में आया था 2000 का नोट
• मौजूदा नोट फिलहाल अमान्य नहीं होंगे
• 1 बार में 10 नोट (₹20,000) ही बदलवा
• किसी भी बैंक जाकर बदले जा सकते हैं नोट
नोटबंदी के दौरान, लोगों को नोटों को बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों में जमा करने के लिए नोटों को बदलने की अनुमति दी गई। नोटों को जमा करने के बाद, लोगों को नए 500 रुपये और 2000 रुपये के नोटों के साथ बदले गए। यह कदम कई लोगों को परेशानी में डालने के साथ-साथ कई आरोपों और प्रश्नों का भी कारण बना। इसके परिणाम
, कुछ महीनों तक देश में नकदी की कमी थी और अर्थव्यवस्था पर कुछ अस्थिरता देखी गई। इसके साथ ही, कई लोगों को नकदी की आवश्यकता के चलते असुविधा का सामना करना पड़ा।
नोटबंदी के समर्थक दावा करते हैं कि यह कदम नकदी में अराजकता, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के संचालन को रोकने में मदद करेगा। इसके अलावा, यह नकदी में ब्लैक मनी को कम करने में सहायता करेगा और वित्तीय संप्रवाह को बैंकिंग सिस्टम में एकीकृत करने में सहायता प्रदान करेगा।
नोट बंदी का सबसे ज्यादा प्रभाव :-
नोटबंदी के विरोधी यह दावा करते हैं कि इसके प्रभाव से सबसे ज्यादा गरीब और आम आदमी प्रभावित हुए, जो सामान्य जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हो गए। वे नकदी की कमी, लंबी लाइनों, और वित्तीय असुरक्षा का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, नोटबंदी के दौरान बहुत सारे पुराने नोट भी बाजार में विद्यमान रहे जिन्हें बाद में नए नोटों के बदले में नहीं किया जा सका।
हालांकि, नोटबंदी के दौरान उठे विवादों के बावजूद, इसके चलते कुछ पॉजिटिव परिणाम भी देखे गए। नोटबंदी के बाद से डिजिटल वित्तीय संक्रमण में वृद्धि हुई और भारत में डिजिटल भुगतान की व्यापकता में इजाफा हुआ। यह नकदी संक्रमण को कम करने, बैंकिंग संरचना को सुधारने और वित्तीय समावेशीकरण को प्रोत्साहित करने का एक पथ साबित हुआ।
इसके अतिरिक्त, नोटबंदी ने बैंक खातों में जमा हुए नकदी की मात्रा को वृद्धि दी, जिससे वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता में सुधार हुआ और ऋण वितरण में वृद्धि हुई। इससे बैंकों को और अन्य वित्तीय संस्थानों को आवश्यक नकदी की प्राथमिकता को पूरा करने में मदद मिली।
यहां तक कि नोटबंदी के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था ने विश्वासघात के बावजूद तेजी से आर्थिक विकास का समर्थन किया है। वापसी में लंबे समय तक, यह साबित हो सकता है कि नोटबंदी के प्रभाव और इसके बित सवालों के बावजूद, नोटबंदी ने अपराधिक और गैरकानूनी गतिविधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई को प्रोत्साहित किया। नकदी के गुड़लों और भ्रष्ट धन में संक्रमण की रोकथाम के लिए कई सुधार उठाए गए हैं।
साथ ही, नोटबंदी ने लोगों को डिजिटल भुगतान की ओर प्रोत्साहित किया है। नोटबंदी के बाद से भारत में वॉलेट, इंटरनेट बैंकिंग, ई-कॉमर्स और डिजिटल पेमेंट ऐप्स का उपयोग बड़े पैमाने पर बढ़ा है। इससे लोगों को सुरक्षित और आसान तरीके से विभिन्न लेन-देन करने में मदद मिली है।
नोटबंदी की परिकल्पना का उद्देश्य था देश के वित्तीय संरचना को बदलना और गैरकानूनी धन के बहिष्कार को रोकना। यह एक बड़ी कदम थी जो अपने अंतिम परिणामों के लिए विवादों के साथ आयी, लेकिन उसका पूरा महत्व और प्रभाव लंबे समय तक समझना आवश्यक होगा।
Nice blog keep continue.
Table of contents dijiyega thora idhar
udhar jump karnemai ascha hota hai
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